OPS Latest News: देश भर में सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना (OPS) को फिर से लागू करने की मांग कर रहे हैं। इस मुद्दे पर लगातार बहस चल रही है और कर्मचारी संगठनों का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। हाल ही में, कर्मचारियों ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को ज्ञापन सौंपकर अपनी इस मांग को प्रमुखता से उठाया है। उनका कहना है कि वर्तमान नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) की तुलना में पुरानी पेंशन योजना उनके लिए ज्यादा फायदेमंद और सुरक्षित है। इस परिस्थिति में अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर कोई बड़ा फैसला ले सकती है।
पुरानी पेंशन योजना के फायदे
पुरानी पेंशन योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद उनकी अंतिम सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में दिया जाता है। इस योजना का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें कर्मचारियों को अपनी ओर से कोई भी योगदान नहीं देना पड़ता था। पूरी पेंशन राशि सरकार द्वारा वहन की जाती थी, जिससे कर्मचारियों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ता था। इसके अलावा, इस योजना के तहत मिलने वाली पेंशन में महंगाई भत्ते (DA) के आधार पर समय-समय पर बढ़ोतरी भी होती रहती थी, जिससे महंगाई के अनुसार पेंशन राशि में भी वृद्धि होती रहती थी।
एक अन्य महत्वपूर्ण लाभ यह था कि अगर किसी पेंशनभोगी की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को पारिवारिक पेंशन के रूप में उसकी पेंशन राशि का एक निश्चित प्रतिशत मिलता रहता था। इस प्रकार, OPS कर्मचारियों और उनके परिवारों को जीवनभर वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती थी।
नेशनल पेंशन सिस्टम की कमियां
2004 में केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को बंद करके नेशनल पेंशन सिस्टम लागू किया था। NPS के तहत, कर्मचारियों को अपनी मासिक सैलरी का 10 प्रतिशत हिस्सा पेंशन फंड में योगदान के रूप में देना पड़ता है, जबकि सरकार अपनी ओर से 14 प्रतिशत का योगदान देती है। इस योजना में पेंशन की राशि बाजार में किए गए निवेश के प्रदर्शन पर निर्भर करती है, जिसमें जोखिम का तत्व भी शामिल होता है।
कर्मचारियों का कहना है कि NPS में उनके पेंशन की राशि निश्चित नहीं होती और बाजार की उतार-चढ़ाव से प्रभावित होती है। इसके अलावा, उन्हें अपनी सैलरी का एक हिस्सा योगदान के रूप में देना पड़ता है, जो उनके लिए अतिरिक्त आर्थिक बोझ है। इस योजना में महंगाई भत्ते के अनुसार पेंशन में नियमित वृद्धि का भी प्रावधान नहीं है, जिससे रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीतिक दलों का रुख
पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने की मांग अब राजनीतिक मुद्दा भी बन गई है। कई राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बना रहे हैं और कर्मचारियों की मांग का समर्थन कर रहे हैं। अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है।
राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने पहले ही अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू कर दिया है। इन राज्यों के निर्णय से केंद्र सरकार पर भी दबाव बढ़ गया है कि वह भी अपने कर्मचारियों के लिए इसी तरह का कदम उठाए।
यूनिफाइड पेंशन स्कीम: एक नया विकल्प
हाल ही में सरकार ने यूनिफाइड पेंशन स्कीम (UPS) की घोषणा की है, जिसे OPS और NPS के बीच एक संतुलित विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। इस योजना के तहत कर्मचारियों को अपने वेतन का 10 प्रतिशत योगदान देना होगा, जबकि सरकार इसमें 18.5 प्रतिशत का योगदान देगी।
UPS में पेंशन की राशि कर्मचारी की अंतिम 12 महीने की औसत सैलरी के आधार पर तय की जाएगी, जो OPS की तरह है। हालांकि, इस योजना में भी कर्मचारियों को अपना योगदान देना पड़ेगा, जिसके कारण कई कर्मचारी संगठन अभी भी इससे संतुष्ट नहीं हैं और पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग कर रहे हैं।
क्या होगा आगे का रास्ता?
वर्तमान में यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार पुरानी पेंशन योजना को पूरी तरह से बहाल करेगी या नहीं। UPS की घोषणा से यह संकेत मिलता है कि सरकार कर्मचारियों की चिंताओं को संबोधित करने की कोशिश कर रही है, लेकिन पूरी तरह से OPS को लागू करने के लिए तैयार नहीं है।
वित्त मंत्रालय के विशेषज्ञों का कहना है कि पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने से सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ेगा। दूसरी ओर, कर्मचारी संगठनों का तर्क है कि कर्मचारियों के कल्याण और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अंततः, यह देखना होगा कि सरकार कर्मचारियों की मांगों और वित्तीय स्थिरता के बीच कैसे संतुलन बनाती है। फिलहाल, कर्मचारियों को उम्मीद है कि उनकी आवाज सुनी जाएगी और पुरानी पेंशन योजना जल्द ही फिर से लागू की जाएगी।